जलवायु परिवर्तन

 

जलवायु परिवर्तन

भारत संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के रूपरेखा सम्मेलन का सदस्य देश है जिसका उद्देश्य ग्रीन हाउस गैसों को वायुमण्डल के एक स्तर पर केंद्रित करना है ताकि मनुष्य जलवायु प्रणाली में खतरनाक हस्तक्षेप न कर सके।

सम्मेलन में विभिन्न पक्षों को उसके सचिवालय के माध्यम से निम्न प्रमुख सूचनाएं देने को कहा गया है: 

(i) मॉन्ट्रियल समझौते से नियंत्रित होने वाली गैसों के उत्सर्जन के स्रोतों को और सभी ग्रीन हाउस गैसों के धीरे धीरे कम होने की जहां तक क्षमता अनुमति देती है उसकी राष्ट्रीय सूची । समझौते को लागू करने के उपायों का विवरण। (ii) कोई अन्य सूचना जिसे पार्टी समझौते में उद्देश्यों को हासिल करने के लिए उचित समझती है। पर्यावरण मंत्रालय परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए नोडल एजेंसी है।

भारत ने 2002 में क्योटो समझौते को स्वीकार किया और इसका एक उद्देश्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप स्वच्छ विकास लागू करना है। समझौते के अनुसार संक्रांतिकाल के दौरान की अर्थव्यवस्थाओं सहित विकसित देश ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 2008-12 के दौरान 1990 के स्तरों से औसतन 5.2 प्रतिशत कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 28 फरवरी 2007 तक राष्ट्रीय सी डी एम प्राधिकरण ने बायोमास आधारित 526 परियोजनाओं को मंजरी दी। प्राधिकरण ने पनरोपयोगी ऊर्जा, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट, हाइड्रोफ्लोरो कार्बन, लघु जलीय एवं ऊर्जा क्षमता के क्षेत्र में अनेक परियोजनाओं को स्वीकृति दी है। इन परियोजनाओं से देश में विदेशी निवेश और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ेगा।

भारतवर्ष पर्यावरण और जलवायु के मामले में विश्व का प्रेरणा स्रोत रहा है जिससे प्रेरित होकर विश्व के महान लोग यहां बस गए। भारत में प्रकृति, वृक्षों वनों पेड़ पौधों की महत्ता पूरे विश्व में जानी मानी जाती है हमारे देश में प्रकृति को भगवान तूल्य माना जाता है जैसे-स्वामी विवेकानंद ने कहा"अपने देश में जो उत्सव त्यौहार, व्रत, उपवास, मनाये जाते है उनका उद्देश्य रहता है मानव जीवन से जुड़े हुए सारे तत्वों और वनस्पतियों को अंतःकरण से प्यार करना।''

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