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समानार्थक या पर्यायवाची शब्द

समानार्थक या पर्यायवाची शब्द :- अंग :-  अंश, भाग, हिस्सा, अवयव कलेवर।  अग्नि :-  आग, अनल, पावक, दहन, ज्वाला वहि। अचानक :- अकस्मात्, सहसा, एकाएक, संयोगवश। अंधेरा :- तम, तिमिर, अंधकार, कालिमा, तमिस्त्र। अनुपम :- अनूठा, विलक्षण, अद्वितीय, अनुपम, निरुपम। अमृत:-  सुधा, सोम, अमिय, पीयूष, जोवन, अमी। अद्भुत :-  अनूठा, अनोखा, अपूर्व, निराला, अद्वितीय, अनुपम । अहंकार :- दर्प, दंभ, ब्लड, अभिमान, अकड़। आम :- आम्र, रसाल, अमृतफल, चून, च्युत। आंख :- नेत्र, नयन, लोचन, चक्षु, विलोचन, दृग, दृष्टि। आकाश :- नभ, गगन, व्योम, आसमान, अंबर, अंतरिक्ष, अनन्त। आनंद :- खुशी, हर्ष, प्रसन्नता, प्रमोद, उल्लास, मोद, आहाद। इच्छा :- चाह, कामना, स्मृहा, आकांक्षा, अभिलाषा, मनोरथ।  ईश्वर :- प्रभु, भगवान्, परमात्मा, परमेश्वर, ईश, जगदीश। उद्देश्य :- लक्ष्य, ध्येय, प्रयोजन, साध्य, हेतु, इष्ट।  कमल :- पंकज, जलज, सरोज, अम्बुज, शतदल, उत्पल। कपड़ा :- पट, चीर, वस्त्र, वसन, अम्बर, आच्छादन, दुकूल।  किरण :- अंशु, रश्मि, प्रभा, ज्योति, दीप्ति, मयूख।  कुशल :- दक्ष, चतुर, प्रवीण, पटु, क्षेम। कृतज्ञ :- ऋणी, आभारी, उपकृत, अनुगृहीत, अहसा

बहादुर 10th class hindi question and answer

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बहादुर  🌟बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था  👉एक बार बहादुर ने अपनी मां की प्यारी भैंस को बहुत मारा मां ने भैंस की मार का काल्पनिक अनुमान करके एक डंडे से उसकी दुगनी पिटाई कि बहादुर का मन मां  से फट गया वह चुपके से कुछ रुपए लिया और घर से भाग गया 🌟बहादुर का चरित्र-चित्रण करें 👉बहादुर कहानी का नायक है उम्र 13-14 वर्ष है ठीगना कद है गोरा शरीर और चपटे मुह वाला बहादुर अपनी मां की उपेक्षा और प्रताड़ना का शिकार है अपने काम में चुस्त-दुरुस्त और फुर्तीला है मानवीय भावनाएं हैं सबसे बड़ी बात है कि वह स्वाभिमानी और मेहनती तथा अपने काम के प्रति इमानदार है 🌟 बहादुर के नाम से दिल शब्द क्यों उड़ा दिया गया विचार करें 👉प्रथम बार नाम पूछने पर बहादुर ने अपना नाम दिल बहादुर बताया यहां दिल शब्द का अभिप्राय भावात्मक परिवेश में है बहादुर को उदारता से दूर रहकर मन और मस्तिष्क से केवल अपने घर के कार्यों में लीन होने का उपदेश दिया गया था इस प्रकार से निर्मला द्वारा उसके नाम से दिल शब्द उड़ा दिया गया 🌟अपने शब्दों में पहली बार दिखे बहादुर का वर्णन कीजिए 👉पहली बार देखे बहादुर की उम्र 13 14 वर्ष की थी उसका रंग

विराम चिन्ह

विराम चिन्ह :- विराम का अर्थ है ठहराव पद, वाक्यांश या वाक्य पढ़ते समय विचारों को स्पष्ट करने के लिए बीच-बीच में थोड़ी देर ठहर जाते हैं, इसी ठहराव को व्याकरण में 'विराम' कहते हैं लिखने में भी अपने भावो को स्पष्ट करने के लिए कुछ चिन्ह निर्धारित है, उन्हें विराम चिन्ह कहते हैं। जैसे:- सुनो, मत जाओ। सुनो मत, जाओ। पहले वाक्य में सुनो के बाद विराम चिन्ह लगाने से वाक्य का अर्थ हो गया - सुनो मत जाओ।दूसरे वाक्य में सुनो मत के बाद विराम चिन्ह लग जाने से वाक्य का दूसरा भी अर्थ हो गया - सुनो और चले जाओ।स्पष्ट है कि विराम चिन्हों का प्रयोग हमारे कथन के अर्थ में आश्चर्यजनक  परिवर्तन  कर देता है। हिंदी में प्रयोग किए जाने वाले निम्नलिखित विराम चिन्ह हैं :- 1. पूर्ण विराम (।) :-  वाक्य के पूरा हो जाने पर इन चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। केवल प्रश्नवाचक अथवा विस्मयादिबोधक चिन्ह को छोड़कर सदैव ही वाक्य के अन्त में पूर्ण विराम  चिन्ह लगता है। 2. अर्द्ध विराम (;) :-   जहां पूर्ण विराम की अपेक्षा काम रुकना होता है, वहां अर्द्ध विराम चिन्ह लगाया जाता है। जैसे:-  (क) परिश्रम ही जीवन है; आलस्य से ही

उपवाक्य

उपवाक्य :- कभी-कभी कथन को स्पष्ट करने के लिए एक वाक्य में कई छोटे-छोटे वाक्य लिखे जाते हैं, इन छोटे वाक्यों को उपवाक्य कहते हैं।  यह वाक्य का वह अंग है जिसमे एक कर्ता और एक क्रिया हो। जैसे:-  गीता ने कहा कि ट्रेन चली गई। यहां इन वाक्य में दो उपवाक्य हैं - पहला 'गीता ने कहा' और दूसरा 'ट्रेन चली गई'। उपवाक्य के दो भेद होते हैं :- 1. प्रधान वाक्य :- यह वाक्य का वह हिस्सा होता है जो स्वतंत्र अर्थ भी दे सकता है, और दूसरा उपवाक्य पर आश्रित नहीं होता है। जैसे:-  श्याम ने कहा कि विद्यालय बंद है। यहां 'श्याम ने कहा' प्रधान उपवाक्य है। 2. आश्रित उपवाक्य :-  यह वाक्य का वह हिस्सा होता है जो स्वतंत्र नहीं होता। यह दूसरे उपवाक्य आश्रित होता है। जैसे:-  आप नहीं जानते कि वह कैसा लड़का है। इस वाक्य में 'आप नहीं जानते' प्रधान उपवाक्य है,  'कि वह कैसा लड़का है' आश्रित उपवाक्य है।

वाक्य, ! अर्थ के आधार पर वाक्य और प्रकार के होते हैं !

अर्थ के आधार पर वाक्य और प्रकार के होते हैं :- 1.   विधिवाचक :- इससे किसी कार्य के होने का बोध होता है। जैसे:- राम ने खा लिया है।          पिताजी आज कोलकाता चले गए। 2. निषेधवाचक :- जिस वाक्य में किसी कार्य के न होने का बोध हो, उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। इसके द्वारा निशा दिया निन्दा प्रकट होता है। पड़ोसियों से बैर करना बुरी बात है। जैसे:- अभिषेक पढ़ता नहीं है।          श्याम आज विद्यालय नहीं आएगा। 3. आज्ञावाचक वाक्य :- जब किसी वाक्य से किसी तरह की आज्ञा प्रार्थन, उपदेश आदि का बोध होता है तो उसे आज्ञावाचक वाक्य खाते हैं। जैसे:- बाहर जाकर देखो कौन आया है।          कृपया मेरी बात सुन लीजिए। 4. प्रश्नवाचक वाक्य :-  जिस वाक्य से किसी प्रश्न का बोध होता है, उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे:- तुम कब आओगे?          तुम भी देश कब जा रहे हो? 5. इच्छाबोधक वाक्य :- जिस वाक्य से किसी प्रकार की इच्छा और शुभकामना प्रकट होता है उसे इच्छाबोधक वाक्य कहते हैं। जैसे:- जहां रहे, सुख से रहे।         तुम्हें सफलता मिले। 6. संदेहवाचक वाक्य :- जिस वाक्य से किसी प्रकार के संदेह का भाव प्रकट हो उसे संदेह

वाक्य, रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के हैं

रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के हैं :- 1. सरल या साधारण वाक्य :- जिस वाक्य में एक कर्ता और क्रिया हो, उसे सरल वाक्य कहते हैं। दूसरे शब्द में जिस वाक्य में एक उद्देश्य और विधेय रहता है, उसे सरल वाक्य करते हैं।  जैसे:- बिजली चमकती है।          बिजली चमकती है।          भारत त्योहारों का देस है। 2. संयुक्त वाक्य :- जिस वाक्य में दो या दो से अधिक सरल या मिश्र वाक्य किसी अव्यय द्वारा जुड़े हो, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। जैसे:- हम गए और तुम आए।          वह धनी है किंतु बहुत घमंडी है।          लता गाती है और हेमा नाचती है। 3. मिश्र वाक्य :- जिस वाक्य में एक सरल वाक्य के अतिरिक्त एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य हो, उसे मिश्र वाक्य कहते हैं। जैसे:- 'मैंने सुना है कि वह मुंबई पहुंच गया है।' इसमें 'मैंने सुना है' प्रधान वाक्य तथा 'वह मुंबई पहुंच गया है' आश्रित उपवाक्य। अतः यह मिश्रित वाक्य है।          

वाक्य

वाक्य :-  क्रमबद्ध सार्थक शब्द समूह जिससे कोई भाव या विचार स्पष्ट रूप से प्रकट हो, उसे वाक्य कहते हैं। जैसे:- 'विद्यार्थी पाठ याद कर रहे हैं।' यह शब्द समूह से वक्ता के कहने का भाव स्पष्ट रूप से प्रकट हो रहा है। अतः इसे वाक्य कहेंगे। वाक्य की विशेषताएं :-  1. सार्थक शब्द व्याकरण के नियमों से बांधकर वाक्य की रचना कहते हैं। 2. वाक्य हमारे भाव या विचारों को पूर्ण रूप से प्रकट करने में समर्थ होता है। 3. कर्ता और क्रिया वाक्य के लिए आवश्यक होता है। 4. वाक्य में कर्ता, कर्म और क्रिया का एक निश्चित क्रम होता है। 5. विशेषण, क्रियाविशेषण आदि पदों का प्रयोग करने से वाक्य का विस्तार होता है। वाक्य के मुख्य रूप से दो अंग होते हैं :- 1. उद्देश्य :- वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाए उसे उद्देश्य कहते हैं। जैसे:- संतोष गाना गाता है। इस वाक्य में संतोष के बारे में कहा गया है आत: संतोष उद्देश्य है। 2. विरोध :- उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाए उसे विरोध कहते हैं। जैसे:- संतोष गाने गाता है। इस वाक्य में 'गाना गाता है' यह विशेष है।

संधि - संधि के परिभाषा , संधि के भेद, संधि के भेद उदाहरण सहित

संधि :-  👉 संधि का सामान्य अर्थ मेल होता है। दो वर्णों के परस्पर मेल के उत्पन्न विकार को संधि कहते हैं। जैसे :- राम + अनुज = रामानुज। इसमें म और अ मिलकर मा हो गया है। 👉इस प्रकार, दो अक्षरों के आपस में मिलने से उनके आकार और ध्वनि में जो बिकार पैदा होता है, उसे संधि कहते हैं। संधि - विच्छेद :-  👉संधि द्वारा बने वने वर्णों को पुनः अलग करने की विधि को संधि - विच्छेद कहते हैं। जैसे :-  धनादेश = धन + आदेश (यह संधि - विच्छेद है।) संधि के तीन भेद होते हैं :- 🌟1. स्वर संधि 🌟2. व्यंजन संधि 🌟3. विसर्ग संधि  1. स्वर संधि :- 👉स्वरों के परस्पर मेल से जो परिवर्तन होता है या विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसे:-  देव + आलय = (अ + आ = आ )  देवालय। धर्म + आत्मा = (अ + आ = आ ) धर्मात्मा। 2. व्यंजन संधि :-  👉व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन संधि कहते हैं ‌ जैसे:-  जगत् + ईश = जगदीश सत् + जन = सज्जन 3. विसर्ग संधि  :- 👉( : ) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार विसर्ग संधि कहलाता है। जैसे:- नि: + संतान = नि : संतान मन: + रथ = मनोरथ

समास - समास के परिभाषा , समास के भेद, समास के भेद उदाहरण सहित

समास :-  👉परिभाषा - समाज शब्द का अर्थ है - संक्षेप। जब दो या दो से अधिक शब्द अपने कारक चिन्ह को छोड़कर एक हो जाते हैं तो उस इस क्रिया को समास कहते हैं। जैसे:- राजपुत्र = राजा का पुत्र। यहां 'राजा' और 'पुत्र' दो पद हैं जो 'का' विभक्ति से जुड़े हुए हैं। जब 'का'विभक्ति का लोप हो जाता है तो एक नया पद बनता है - राजपुत्र। यहां क्रिया समास कहलाती है। समास के चार भेद होते हैं :- 1. अव्ययीभाव समस :- 👉जिस समास का प्रथम पद अव्यय हो और उसी का अर्थ प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समस कहते हैं। जैसे:- यथाशक्ति = (यथा + शक्ति), यहां यथा अव्यय का मुख्य अर्थ जितनी शक्ति है। इसमें 'यथा' अव्यय की प्रधानता है। इसी प्रकार प्रतिदिन, यथासाध्य, प्रतिवर्ष, अलौकिक, आजन्म, भरपेट, दिनोंदिन अव्ययीभाव के उदाहरण है। 2. तत्पुरुष समास :- 👉जिस समास पद में पहला पद प्रधान न हो उत्तर पद (बाद का पद) प्रधान हो उसे तत्पुरुष समास का के हैं। इसी समास में कारकिए परसर्गो (का, की, के, में, से, पर, द्वारा) का लोप हो जाता है। जैसे:- राजपुत्र, हारखर्च, धनहिन, शरणागत, आदि। राजपुत्र। यहां 'राज

प्रत्यय

प्रत्यय :- जो शब्दांश शब्द के अंत में लगकर उसके अर्थ में परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देता है, उसे प्रत्यय कहते हैं। जैसे:-  (क) 'हंस' क्रिया में 'आई' प्रत्यय लगाने से हंसाई                   शब्द बनता है।          (ख) इसी प्रकार 'लड़का' शब्द में 'पन' प्रत्यय                      लगा देने पर 'लड़कपन' शब्द बनता है। नोट:-  उपसर्ग शब्द केेे पहले लगते हैं, पर्दे बाद में जोड़े जाते हैं। प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं :- 1. कृत् प्रत्यय 2. तद्धित प्रत्यय 1. कृत् प्रत्यय :- क्रिया धातु के अंत में जो प्रत्यय लगाते हैं, उन्हें प्रीता कृत् प्रत्यय कहलाते हैं तथा कृत प्रत्यय के लगाने से बनने वाले शब्द 'कृदंन्त' (कृत् + अन्त) कहलाते हैं जो संज्ञा या विशेषण होते हैं। जैसे:- 'पढ़' धातु में 'आई' प्रत्यय लगाने पर पढ़ाई और खेल में 'आडी' प्रत्यय लगाने पर खिलाड़ी शब्द बनते हैं। यह दोनों कृत् प्रत्यय है। 2. तद्धित प्रत्यय :-    संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण के अन्त्त में जुड़नेवाला प्रत्यय तद्धित प्रत्येक कहलातेे हैं और इनके मेल से बने

उपसर्ग

उपसर्ग :- उपसर्ग व शब्दांश है जो किसी शब्द के पहले लगते हैं और उसके अर्थ को बदल देते हैं। जैसे:- 'जय' शब्द का अर्थ है 'जीत'। यदि उसके शुरू में 'परा' उपसर्ग लगा दे तो 'पराजय' शब्द बनता है। पराजय का अर्थ है, जो 'जय' शब्द के बिल्कुल विपरीत है। इसी प्रकार 'बल' शब्द का अर्थ ताकत है। इसमें 'प्र' और 'निर्' उपसर्ग लगा दिया जाए तो अर्थ बदल जाता है। जैसे:-  उपसर्ग:-  (क) प्र + बल - प्रबल (अधिक बलवान)              (ख) नि:+ बल - निर्बल (कमजोर) हिंदी उपसर्ग लगभग नहीं के बराबर है। ये या तो संस्कृत में है या उर्दू के। संस्कृत उपसर्गो की संख्या 22 , हिंदी उपसर्गों की संख्या 8, उर्दू उपसर्ग 19 के लगभग हैं।           

अव्यय (अविकारी) - अव्यय के परिभाषा , अव्यय के भेद, अव्यय के भेद उदाहरण सहित

अव्यय (अविकारी) :-  👉जिस शब्द के रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक, इत्यादि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है, उसे अव्यय या अविकारी कहते हैं। जैसे:- अभी, तब, जब, अरे!,          अर्थात्, लेकिन, परंतु, वाह!            तथा, और, आगे, पीछे, यहां,वहां, बहुत, भारी, इत्यादि। अव्यय के चार भेद होते हैं :- 1. क्रियाविशेषण :- 👉जो शब्द क्रिया की विशेषता बताये,उसे क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे:- खरगोश तेज भागता है।          कछुआ धीरे-धीरे चलता है। क्रिया विशेषण के चार भेद होते हैं:- 🌟(क) स्थानवाचक :- 👉जो क्रिया विशेषण क्रिया के स्थान की स्थिति एवं दिशा का बोध कराये उसे स्थानवाचक क्रिया विशेषण करते हैं। जैसे:- यहां, वहां, पास, दूर, दाएं, बाएं, ऊपर, नीचे, पास, दूर, इत्यादि 🌟 (ख) कालवाचक :-  👉जो शब्द क्रिया के काल (समय) संबंधी विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे:- अभी-अभी, आज, कल, प्रतिदिन, सुबह, इत्यादि। 🌟 (ग) रीतिवाचक :- 👉जो शब्द क्रिया में रीति, ढंग, विधि का बोध कराता है, उसे रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे:- धीरे- धीरे चलो।          हिरन तेज भागता है ।

वाच्य- वाच्य के परिभाषा , वाच्य के भेद, वाच्य के भेद उदाहरण सहित

वाच्य :-  परिभाषा- वाच्य क्रिया के उस रूप को कहते हैं जिससे यह बोध हो कि वाक्य में कर्ता, कर्म अथवा भाव में से किसकी प्रधानता है। अर्थात क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष का निर्धारण इसमें से इसके अनुसार हुआ है। जैसे:- अभिषेक पुस्तक पढ़ता है।          श्याम ने रोटी खायी। ऊपर के वाक्यों में क्रमशः कर्ता, कर्म और भाव की प्रधानता है। वाच्य तीन प्रकार के होते हैं :- 🌟1. कर्तृवाच्य  🌟 2. कर्मवाच्य 🌟 3. भाववाच्य 1. कर्तृवाच्य :- 👉जिस वाक्य में कर्ता की प्रधानता हो अर्थात क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के अनुसार होता है, उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं। जैसे:- चिड़िया चहक रही है।          सूरज निकल रहा है। 2. कर्मवाच्य :- 👉जिस वाच्य में क्रिया कर्ता के अनुसार न होकर कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होता है, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। जैसे:- सोहन ने गीत गाया।          तुमने रोटी खाई। 3. भाववाच्य :-  👉भाव का अर्थ है - क्रिया का भाव। अर्थात वाक्य में क्रिया न तो कर्ता के अनुसार हो और न कर्म के अनुसार, जहां क्रिया का भाव प्रधान हो, वहां भाववाच्य कहते हैं। जैसे:- मुझसे बैठा नहीं आता।          म

काल - काल के परिभाषा , काल के भेद, काल के भेद उदाहरण सहित

काल :-  👉काल क्रिया का वह रूप है, जिससे समय का बोध होता है। जैसे:- संजय विद्यालय जाता है।          संजय विद्यालय  गया।          संजय विद्यालय जाएगा। ऊपर के वाक्यों से हमें क्रिया के होने के समय का पता चलता है। काल के तीन भेद होते हैं :- 🌟1. वर्तमान काल 🌟2. भूतकाल  🌟3. भविष्य काल 1. वर्तमान काल :- 👉वर्तमान समय में किसी क्रिया के होने या करने का बोध हो उसे वर्तमान कल कहते हैं । जैसे:- राम पढता है।          राम पढ रहा है। वर्तमान काल के तीन भेद होते हैं :- (क) सामान्यय वर्तमान :- 👉किरिया के जिस रुप से उसके वर्तमान काल में सामान्य रूप से होने का बोध हो, उसे सामान्य वर्तमान कहते हैं। जैसे:- गीता पुस्तक पढ़ती है।          बच्चा दूध पीता है। (ख) तत्कालीन वर्तमान :- 👉जिससे क्रिया के वर्तमान समय में लगातार होने की जानकारी मिले, उसे तत्कालीन वर्तमान करते हैं। जैसे:- रजनीश पुस्तक पढ़ रहा है।         सविता साइकिल चला रही है। (ग) संदिग्ध वर्तमान :- 👉क्रिया के जिस रुप से वर्तमान काल में क्रिया के होने का अनुमान या संदेश हो, उसे संदिग्ध वर्तमान कहते हैं। जैसे:- रोहित पड़ता होगा।          स

लिंग - लिंग के परिभाषा , लिंग के भेद, लिंग के भेद उदाहरण सहित

लिंग :- 👉लिंग का अर्थ है चिन्ह। शब्द के जिस रुप से पुरुष अथवा स्त्री जाति का बोध हो, उसे लिंग कहते हैं। जैसे:- (क) चाचा - चाची (ख) राजा - रानी (ग) भाई - बहन (घ) अध्यापक - अध्यापिका यदि प्रत्येक का पहला शब्द नर का नाम है। प्रत्येक जोड़का दूसरा शब्द मादा का नाम है।            हिंदी में सारे पदार्थ वाचक शब्द चाहे जड़ हो या चेतन स्त्रीलिंग और पुल्लिंग इन दो लिंगों में विभक्त है :- हिंदी में लिंग के दो भेद हैं :- 🌟1. पुलिंग 🌟2. स्त्रीलिंग 1. पुलिंग  :- 👉जो संज्ञा शब्द पुरुष जाति का बोध कराए, उसे पुलिंग कहते हैं। जैसे:- लड़का, पिताजी, वृक्ष, शेर, पर्वत, पंडित, आदि। 2. स्त्रीलिंग :- 👉जो संज्ञा शब्द स्त्री जाति का बोध कराए ,उसे स्त्रीलिंग करते हैं। जैसे:- लड़की, शिक्षिका, शेरनी, नदी, पंडिताइन, आदि।

क्रिया - क्रिया के परिभाषा , क्रिया के भेद, क्रिया के भेद उदाहरण सहित

क्रिया :-  👉परिभाषा -  जिस शब्द से किसी काम के होने या करने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे:- खाना, पढ़ना, हंसना, रोना, नाचना, खेलना, आदि। उदाहरण :- (क) हवा बह रही है। (ख) वर्षा हो रही है। (ग) चंदन क्रिकेट खेलता है। 👉 स्मरण रखें : जो काम करने का बोध करता है। वह शब्द क्रिया कहलाता है। धातु :-   👉जिस मूल शब्द से क्रिया का निर्माण होता है, उसे धातु कहते हैं। धातु में 'ना' जोड़कर क्रिया बनायी जाती है। जैसे: - पढ़+ना =पढ़ना।      आ+ना =आना। क्रिया के भेद :- 👉कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद होते हैं :- 🌟1. अकर्मक क्रिया 🌟2. सकर्मक क्रिया 1. अकर्मक क्रिया :- 👉जिस क्रिया के कार्य का फल कर्ता पर ही पड़े, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। अकर्मक क्रिया का कोई कर्म (कारक) नहीं होता, इसलिए इसे अकर्मक कहा जाता है। जैसे:-  (क) श्याम रोता है। (ख) आशुतोष दौड़ता है। 2. सकर्मक क्रिया :-  👉जिस क्रिया में कर्म का फल कर्ता पर ना पढ़कर किसी दूसरी जगह पड़ता है तो उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। सकर्मक क्रियाओं के साथ कर्म (कारक) रहता है या उसके साथ रहने की संभावना करता है। जैसे:- (क) मोहन पुस्त

कारक - कारक के परिभाषा,कारक के भेद, कारक के भेद उदाहरण सहित

कारक :-  कारक शब्द का संबंध 'कृ' धातु से है। इसका अर्थ है करने वाला। 👉कारक उस 'संज्ञा सर्वनाम आदि को कहते हैं जो वाक्य के अन्य शब्दों से या क्रिया से संबंध जोड़ता है।' जैसे:- 1. पेड़ पर कौवा बैठा है।          2. गीता पुस्तक पढ़ती है।          3. कृष्ण ने कंस को मारा। यहाॅ बैठना और पढ़ना और पढ़ना क्रिया का संबंध कृष्ण, पेड़, गीता से है। जो संज्ञा (कर्ता) है। विभक्ति :-  👉कारक को प्रकट करने के लिए जो चिन्ह लगाया जाता है, उसे विभक्ति कहते हैं। इसे परसर्ग भी कहते हैं। कारक के भेद :- 👉हिंदी में आठ कारक :- 1. कर्ता कारक :- 👉कर्ता का अर्थ है करनेवाला, जिसके द्वारा कोई क्रिया की जाती है, उसे कर्ता कारक कहते हैं। इसमें 'ने' विभक्ति लगती है तथा कभी कभी नहीं भी लगती है। जैसे:- (क) मोहन जाता है।          (ख) कृष्णा ने  गाया।          (ग) मैंने   प्यार किया। 2. कर्म कारक :-  👉जिस प्रक्रिया का फल पड़े, उसे कर्मकारक कहत हैं। जैसे:- (क) वह सूर्य  को देखता है।          (ख) मोहन किताब पढ़ता है।          (ख) अर्जुन ने जयद्रथ को मारा। 3. करण कारक :-  👉कर्ता जिस साधन से

वचन - वचन के परिभाषा,वचन के भेद एवं उदाहरण

वचन किसे कहते हैं वचन :-संज्ञा सर्वनाम विशेषण और क्रिया के जिस रुप से संख्या का बोध हो उसे वचन कहते हैं। 👉वचन का अर्थ 'संख्यावचन' है। व्याकरण में इसका तात्पर्य संख्या से है। अर्थात् शब्दों के संख्या बोधक भिकारी रूप का नाम 'वचन' है। जैसे:- घोड़ा-घोड़े, महिला-महिलाएं, आदि। वचन के दो भेद हैं :- 1. एकवचन 2. बहुवचन 1. एकवचन :- 👉शब्द के जिस रूप से पदार्थ, व्यक्ति या वस्तु का बोध हो, उसे एक वचन कहते हैं। जैसे:- चिड़िया, लड़का, कुत्ता, घोड़ा, आदि। 2. बहुवचन :- 👉शब्द के जिस रूप से एक से अधिक पदार्थों या व्यक्ति का बोध हो, उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे:- लड़के, घोड़े, कुत्ते, कपड़े, इत्यादि। वचन की पहचान दो तरह से की जाती है :- 🌟(१) संज्ञा, सर्वनाम से 🌟(२) क्रिया से (२) संज्ञा, सर्वनाम से वचन की पहचान :- (क) वह पढ़ रहा है।                          वे पढ़ रहे हैं। (ख) मैं जा रहा था।                          हम जा रहे थे। (२) क्रिया से वचन की पहचान :- (क) बालक पड़ रहा है।          बालक पढ़ रहे हैं।    (ख) मोर नाचेगा।                  मोर नाचेंगे।    वचन संबंधी विशेष निर्देश एवं

विशेषण - विशेषण की परिभाषा, विशेषण के भेद उदाहरण सहित

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विशेषण :-  👉जो शब्द संज्ञा अथव सर्वनाम की विशेषता प्रकट करते हैं, विशेषण कहलाते हैं। जैसे:- (क) काली गाय का दूध मीठा है।          (ख) पेड़ बहुत ऊंचा है। 👉नोट :- विशेषण संज्ञा की विशेषता प्रकट करते हैं और साथ ही सर्वनाम की। जैसे:- वह सुंदर है। इस वाक्य में सुंदर शब्द वह सर्वनाम की विशेषता बताता है। विशेषण के कार्य :- 🌟1. विशेषण से संख्या का निर्माण होता है। 🌟2. विशेषण से किसी की हीनता भी प्रकट होता है। 🌟3. विशेषण परिमाण या मात्रा बदलने का काम भी करता है। विशेषण के चार भेद :- 1. गुणवाचक विशेषण 2. संख्यावाचक विशेषण 3. परिमाणवाचक विशेषण 4. सर्वनामिक विशेषण 1. गुणवाचक विशेषण :- 👉जिस विशेषण शब्द से गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, आदि का बोध हो, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे:- गुण:- अच्छा, सुंदर, विद्वान्, बलवान, दानी। दोष: - पापी, लालची, बुरा, क्रूर। रंग:- सफेद, लाल, हरा, नीला। आकार:- गोल, मोटा, नुकीला, लंबा, नाटा। अवस्था:- बुढ़ा, स्वस्थ, बीमार, जवान। 2. संख्यावाचक विशेषण :- 👉जो विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की संख्या संबंधी विशेषता प्रकट करें, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे:- ए

सर्वनाम- सर्वनाम के परिभाषा,सर्वनाम के भेद,उदाहरण

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सर्वनाम सर्वनाम :- 👉 परिभाषा :- संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। अर्थात् सर्वनाम का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर होता है। जैसे:- सुनील परीक्षा नहीं दे सका, क्योंकि वह बीमार हो गया था। हिंदी में ग्यारह सर्वनाम है :- मैं, आप, यह, वह, जो, सो, कोई, कुछ, कौन, क्या।  इन्हीं सर्वनामो से और भी सर्वनाम बनते हैं। सर्वनाम के छह भेद होते हैं। 1.  पुरुषवाक च   सर्वनाम:- 👉 जिस सर्वनाम से किसी (वक्ता) कहनेवाला, (श्रोता) सुनने-वाला और जिसके विषय  में बातचीत की जा रही है का बोध हो, वह पुरुषवाचक सर्वनाम है। जैसे:- मैंने तुम्हें उसकी कलम दी। पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद हैं :- (क) उत्तम पुरुष :-  👉 कहनेवाला आपने लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग करता है, उसे उत्तम पुरुष कहते हैं। जैसे:- मैं, हम। (ख) मध्यम पुरुष :-  👉 जिस सर्वनाम को बोलनेवाला सुननेवाले के लिए प्रयोग करता है, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे:- तुम, तू, आप। (ग) अन्य पुरुष :-  👉 जिसके विषय में बात की जाती है, उसेे अन्य पुरुष कहतेे हैं। जैसे:- क्या, कौन, कुछ, जो, यह, इत्यादि। 2. निश्चयवाचक सर्वनाम :- 👉 जो सर्वनाम न

संज्ञा - संज्ञा के परिभाषा,संज्ञा के भेद, उदाहरण

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संज्ञा :- आज संज्ञा के बारे में जानेंगे - संज्ञा हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण टॉपिक है। संज्ञा शब्द से संसार के समस्त वास्तु ,प्राणी, स्थान, भाव का बोध होता है 👉 परिभाषा :- किसी प्राणी, वस्तु, स्थान या भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं। उदाहरण :- प्राणियों के नाम :- मोर, नारी, मनुष्य, तुलसीदास वस्तुओं का नाम :- पुस्तक, कुर्सी, साइकिल, कंप्यूटर स्थानों के नाम :- सासाराम, पटना, आगरा, कोलकाता संज्ञा के भेद :- संज्ञा के पांच भेद होते हैं - 1. व्यक्तिवाचक 2. जातिवाचक 3. भाववाचक 4. समूहवाचक 5. द्रव्यवाचक 1. व्यक्तिवाचक संज्ञा :- 👉 जो संज्ञा शब्द किसी विशेष व्यक्ति, वस्तु,अथवा स्थान आदि के नाम का बोध करता है, उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे :- रामायण महाकाव्य है। अतुल पड़ता है। 2. जातिवाचक संज्ञा:- 👉 जो संज्ञा किसी प्राणी, वस्तु अथवा पदार्थ की पूरी जाति का बोध करता हो, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे:- गाय दूध देती हैं। कबूतर उड़ रहे हैं। 3. भाववाचक संज्ञा :- 👉 जिस संज्ञा से किसी पदार्थ का गुण-दोष, स्वभाव, भाव, कर्म या अवस्था आदि का बोध हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे:-

प्रकाश का परावर्तन एवं अपवर्तन​ "प्रकाश के परावर्तन के नियम "

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  प्रकाश के परावर्तन के नियम प्रकाश का परावर्तन​ :-  प्रकाश के किसी वस्तु से टकराकर लौटने को प्रकाश का प्रवर्तन(Reflection of light) कहते हैं​  आपतित  किरण(incident ray) ​ किसी सतह  पर पड़ने वाली किरण को आपतित  किरण कहते हैं ​ आपतन बिंदु(point of incidence)​  आपतन बिंदु जिस बिंदु पर आपतित किरण सतह से टकराती है उसे आपतन बिंदु कहते हैं ​ परावर्तित किरण(reflected ray)​ जिस माध्यम से में चलकर आपतित किरण सतह पर आती है उसी माध्यम में लौट गए किरण को परावर्तित किरण कहते हैं ​  अभिलंब(normal)​  किसी समतल सतह के किसी बिंदु पर खींचे हुए लंब को उस बिंदु पर अभिलंब कहते हैं ​ आपतन कोण (angle of incidence)​  आपतित किरण आपतन बिंदु पर खींचे गए अभिलंब से जो कोण बनती है उसे आपतन कोण कहते हैं​  परावर्तन कोण(angle of reflection)​  परावर्तित किरण आपतन बिंदु पर खींचे गए अभिलंब से जो को बनती है उसे परावर्तन कोण कहते हैं​  प्रकाश के परिवर्तन के निम्नलिखित दो नियम है​ आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा आपतन बिंदु पर खींचा गया अभिलंब तीनों एक ही समतल में होते हैं आपतन कोण, परावर्तन कोण के बराबर होता है​ (कोण i  =

संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः 10th class Sanskrit

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  [समाजस्य यानं पुरुषैः नारीभिश्च चलति । साहित्येऽपि उभयोः समानं महत्त्वम्। अधुना सर्वभाषासु साहित्यरचनायां स्त्रियोऽपि तत्पराः सन्ति यशश्च लभन्ते। संस्कृतसाहित्ये प्राचीनकालादेव साहित्यसमृद्धौ योगदानं न्यूनाधिकं प्राप्यते। पाठेऽस्मिन्नतिप्रसिद्धानां लेखिकानामेव चर्चा वर्तते येन साहित्यनिधिपूरणे तासां योगदानं ज्ञायेत।] हिन्दी समाज की गाड़ी पुरुष और नारी दो चक्कों पर चलती है। साहित्य में भी दोनों का बराबर महत्त्व है। अभी सभी भाषाओं की साहित्य रचना में स्त्रियाँ भी तत्पर हैं और यश प्राप्त कर रहे हैं। संस्कृत साहित्य में प्राचीनकाल से ही साहित्य समृद्धि में उनका योगदान थोड़ा बहुत देखा जाता है । इस पाठ में अति प्रसिद्ध लेखिकाओं की ही चर्चा है, जिससे साहित्य-कोष पूर्णता में उनका योगदान जाना जाय । विपुलं संस्कृतसाहित्यं विभिन्नैः कविभिः शास्त्रकारैश्च संवर्धितम्। वैदिककालादारभ्य शास्त्राणां काव्यानाञ्च रचने संरक्षणे च यथा पुरुषाः दत्तचित्ताः अभवन् तथैव स्त्रियोऽपि दत्तावधानाः प्राप्यन्ते। वैदिकयुगे मन्त्राणां दर्शका न केवला ऋषयः, प्रत्युत ऋषिका अपि सन्ति। ऋग्वेदे । चतुर्विंशतिरथर्ववेदे च प

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