नाखून क्यों बढ़ते हैं class 10th Hindi question an answer
हैलो दोस्तों आज के इस पोस्ट मे हम लोग 10th क्लास की हिन्दी के पाठ "नाखून क्यों बढ़ते" है प्रश्न उतर को करने वाले है।
प्रश्न 1.नाखून क्यों बढ़ते हैं ? यह प्रश्न लेखक के आगे कैसे उपस्थित हुआ ?
उत्तर-नाखून क्यों बढ़ते हैं ? यह प्रश्न एक दिन लेखक की छोटी लड़की ने उनसे पूछ दिया। उस दिन से यह प्रश्न लेखक के सोचने का विषय बन गया।
प्रश्न 2. 'स्वाधीनता' शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है?
उत्तर- लेखक कहते हैं कि स्वाधीनता शब्द का अर्थ है अपने ही अधीन रहना। क्योंकि यहाँ के लोगों ने अपनी आज़ादी के जितने भी नाम-करण किये उन में हैं स्वतंत्रता, स्वराज, स्वाधीनता । उनमें स्व का बंधन अवश्य है
प्रश्न 3. निबंध में लेखक ने किस बूढ़े का जिक्र किय है ? लेखक की दृष्टि में बूढ़े के कथनों की सार्थकता क्या है ?
उत्तर- लेखक ने महात्मा गांधी को बूढ़े के प्रतीक रूप में जिक्र किया हैॽ लेखक की दृष्टि से महात्मा गाँधी के कथनों की सार्थकता उभर कर इस प्रकार आती है- आज मनुष्य में जो पाशविक प्रवृत्ति है उसमें सत्यता, सौंदर्य बोध एवं विश्वसनीयता का लेशमात्र भी स्थान नहीं है। महात्मा गांधी ने समस्त जन समुदाय को हिंसा, क्रोध, मोह और लोभ से दूर रहने की सलाह दी उच्छृंखलता से दूर रहकर गंभीरता को धारण करने की सलाह दी लेकिन इनके सारे उपदेश बुद्धि जीवी वर्ग के लिए उपेक्षित रहा।
प्रश्न 4. लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है अपने आप पर अपने आपके द्वारा लगाया हुआ बंधन । भारतीय चित्त जो आज की अनधीनता के रूप में न सोचकर स्वाधीनता के रूप में सोचता है। यह भारतीय संस्कृति की विशेषता का ही फल है । यह विशेषता हमारे दीर्घकालीन संस्कारों से आयी है, इसलिए स्व के बंधन को आसानी से नहीं छोड़ा जा सकता है।
प्रश्न 5. मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है ?
उत्तर-मनुष्य निरंतर सभ्य होने के लिए प्रयासरत रहा है। प्रारंभिक काल में मानव एवं पशु एक-समान थे।नाखून अस्त्र थे। लेकिन जैसे-जैसे मानवीय विकास की धारा अग्रसर होती गई मनुष्य पशु से भिन्न होता गया। उसके अस्त्र शस्त्र, आहार-विहार, सभ्यता-संस्कृति में निरंतर नवीनता आती गई। वह पुरानी जीवन-शैली को परिवर्तित करता गया । जो नाखून अस्त्र थे उसे अब सौंदर्य का रूप देने लगा। इसमें नयापन लाने, इसे सँवारने एवं पशु से भिन्नदिखने हेतु नाखूनों को मनुष्य काट देता है।
प्रश्न 6. बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है ?
उत्तर-प्राचीन काल में मनुष्य जंगली था। वह वनमानुष की तरह था । उस समय वह अपने नाखून की सहायता से जीवन की रक्षा करता था। आज नखधर मनुष्य अत्याधुनिक हथियार पर भरोसा करके आगे की ओर चल पड़ा है पर उसके नाखून अब भी बढ़ रहे है। बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को याद दिलाती हैं कि तुम भीतर वाले अस्त्र से अब भी वंचित नहीं हो। तुम्हारे नाखून को भुलाया नही जा सकता । तुम वही प्राचीनतम नख एवं दंत पर आश्रित रहने वाला जीव हो । पशु की समानता तुम में अब भी विद्यमान है।
प्रश्न 7. लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है ?
उत्तर-कुछ लाख वर्षों पहले मनुष्य जब जंगली था, उसे नाखून की जरूरत थी। वनमानुष के समान मनुष्य लिए नाखून अस्त्र था क्योंकि आत्मरक्षा एवं भोजन हेतु नख की महत्ता अधिक थी। उन दिनों प्रतिद्वंदियों को पछाड़ने के लिए नाखून आवश्यक था। असल में वही उसके अस्त्र थे। उस समय उसके पास लोहे या कारतूस वाले अस्त्र नहीं थे, इसलिए नाखून को अस्त्र कहा जाना उपयुक्त है, तर्कसंगत है।
प्रश्न 8. लेखक ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर-लेखक ने रूढ़िवादी विचारधारा और प्राचीन संवेदनाओं से हटकर जीवन यापन करने के प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती । लेखक के कहने का अभिप्राय है कि मरे बच्चे को गोद में दबाये रहने वाली बंदरियाँ मनुष्य का आदर्श कभी नहीं बन सकती। यानी केवल प्राचीन विचारधारा या रूढ़िवादी विचारधारा विकासवाद के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। मनुष्य को एक बुद्धिजीवी होने के नाते परिस्थिति के अनुसार साधन का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 9. नाखून बढ़ाना और उन्हें काटना कैसे मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं ? इनका क्या अभिप्राय है?
उत्तर— मानव शरीर में बहुत-सी अभ्यास-जन्य सहज वृत्तियाँ अंतर्निहित हैं। दीर्घकालीन आवश्यकता बनकर मानव शरीर में विद्यमान रही सहज वृत्तियाँ ऐसे गुण हैं जो अनायास ही अनजाने में अपने आप काम करती हैं। नाखून का बढ़ना उनमें से एक है। वास्तव में सहजात वृत्तियाँ अनजान स्मृतियों को कहा जाता है। नख बढ़ाने की सहजात वृत्ति मनुष्य में निहित पशुत्व का प्रमाण है। उन्हें काटने की जो प्रकृति है वह मनुष्यता की निशानी है। मनुष्य के भीतर पशुत्वं है लेकिन वह उसे बढ़ाना नहीं चाहता. है । मानव पशुता को छोड़ चुका है क्योंकि पशु बनकर वह आगे नहीं बढ़ सकता । इसलिए पशुता की पहचान नाखून को मनुष्य काट देता है।
प्रश्न 10. मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जाएंगे। प्राणिशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में कैसी आशा जगती है ?
उत्तर-प्राणीशास्त्रीयों का ऐसा अनुमान है कि एक दिन मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी झड
जायेंगे। इस तथ्य के आधार पर ही लेखक के मन में यह आशा जगती है कि भविष्य में मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जायेगा और मनुष्य का अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जायेगा जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गया है अर्थात् मनुष्य पशुता को पूर्णत : त्याग कर पूर्णरूपेण मानवता को प्राप्त कर लेगा।
प्रश्न 11. सुकुमार विनोदों के लिए नाखून को उपयोग में लाना मनुष्य ने कैसे शुरू किया? लेखक ने इस संबंध में क्या बताया है ?
उत्तर-लेखक ने कहा है कि पशुवत् मानव जब धीरे-धीरे विकसित हुआ, सभ्य बना तब पशुता की पहचान को कायम रखने वाले नाखून को काटने की प्रवृत्ति पनपी। यही प्रवृत्ति कलात्मक रूप लेने लगी। वात्स्यायन के काम-सूत्र से पता चलता है कि भारतवासियों में नाखूनों को जम के सँवारने की परिपाटी आज से दो हजार वर्ष पहले विकसित हुई। उसे काटने की कला काफी मनोरंजक बताई गई है। त्रिकोण, वर्तुलाकार, चंद्राकार, दंतुल आदि विविध आकृतियों के नाखून उन दिनों विलासी नागरिकों के मनोविनोद का साधन बना ।
प्रश्न 12. 'सफलता और चरितार्थता' शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है ?
उत्तर- सफलता और चरितार्थता में इस प्रकार की भिन्नता प्रतिपादित होती है कि मनुष्य मारणास्त्रों के संचयन से तथा बाह्य उपकरणों के बाहुल्य से उस वस्तु को पा भी सकता है जिसे वह बड़े आडम्बर के साथ सफलता नाम दे सकता है । प्रकृति मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, त्याग में है, अपने को सबके मंगल के लिए नि:शेष भाव से दे देने में है। नाखून का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है, उसको काट देना आत्मबंधन का फल है जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है
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