वाच्य- वाच्य के परिभाषा , वाच्य के भेद, वाच्य के भेद उदाहरण सहित
वाच्य :- परिभाषा- वाच्य क्रिया के उस रूप को कहते हैं जिससे यह बोध हो कि वाक्य में कर्ता, कर्म अथवा भाव में से किसकी प्रधानता है। अर्थात क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष का निर्धारण इसमें से इसके अनुसार हुआ है। जैसे:- अभिषेक पुस्तक पढ़ता है। श्याम ने रोटी खायी। ऊपर के वाक्यों में क्रमशः कर्ता, कर्म और भाव की प्रधानता है। वाच्य तीन प्रकार के होते हैं :- 🌟1. कर्तृवाच्य 🌟 2. कर्मवाच्य 🌟 3. भाववाच्य 1. कर्तृवाच्य :- 👉जिस वाक्य में कर्ता की प्रधानता हो अर्थात क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के अनुसार होता है, उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं। जैसे:- चिड़िया चहक रही है। सूरज निकल रहा है। 2. कर्मवाच्य :- 👉जिस वाच्य में क्रिया कर्ता के अनुसार न होकर कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होता है, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। जैसे:- सोहन ने गीत गाया। तुमने रोटी खाई। 3. भाववाच्य :- 👉भाव का अर्थ है - क्रिया का भाव। अर्थात वाक्य में क्रिया न तो कर्ता के अनुसार हो और न कर्म के अनुसार, जहां क्रिया का भाव प्रधान हो, वहां भाववाच्य कहते हैं। जैसे:- मुझसे बैठा नहीं आता। म